मैं अंधेरा, अहोभाग्य मेरे,
जो मेरे स्वागत में, आज
अनगिनत दीये जलेंगे।
लोग कहते हैं, ये साजिश है
मुझे मिटाने की,
पर, मैं नहीं मानता,
इनकी शैतानियात को, मुझसे अच्छा
भला कौन है पहचानता।
इन्हें उजालों की ख्वाइश
तो कतई नहीं, वरना
सूरज ढ़लने का ऐसा इंतज़ार न होता।
न होती आज आमावश्या की रात,
जहां ऊजालों का कोई संसार न होता।
मैंने आजीवन
सबका भला हीं किया है,
थक कर जब सब शाम को आते,
चैन की नींद या प्यार का दामन
सबकुछ उन्हें मैंने हीं दिया है।
फिर भला मुझे क्यों मिटायें,
ऐसी साजिश क्यों रचायें।
धूप जलेंगे, दीये जलेंगे
इतराउंगा मैं , इठलाउंगा मैं
ऊजालों की फ़ितरत पर
जलते दीये की कसरत पर।
फुलझड़ियां होंगी, पटाख़ों की लड़ियां होंगीं,
बरसूंगा मैं, गरजूँगा मैं
आसमान की बुलंदियों पर
धरती की पगडंडियों पर।
कोटि-कोटि धन्यवाद
जो मुझे पुरस्कृत करेंगे,
मैं अंधेरा, अहोभाग्य मेरे।
जो मेरे स्वागत में, आज
अनगिनत दीये जलेंगे।
जो मेरे स्वागत में, आज
अनगिनत दीये जलेंगे।
लोग कहते हैं, ये साजिश है
मुझे मिटाने की,
पर, मैं नहीं मानता,
इनकी शैतानियात को, मुझसे अच्छा
भला कौन है पहचानता।
इन्हें उजालों की ख्वाइश
तो कतई नहीं, वरना
सूरज ढ़लने का ऐसा इंतज़ार न होता।
न होती आज आमावश्या की रात,
जहां ऊजालों का कोई संसार न होता।
मैंने आजीवन
सबका भला हीं किया है,
थक कर जब सब शाम को आते,
चैन की नींद या प्यार का दामन
सबकुछ उन्हें मैंने हीं दिया है।
फिर भला मुझे क्यों मिटायें,
ऐसी साजिश क्यों रचायें।
धूप जलेंगे, दीये जलेंगे
इतराउंगा मैं , इठलाउंगा मैं
ऊजालों की फ़ितरत पर
जलते दीये की कसरत पर।
फुलझड़ियां होंगी, पटाख़ों की लड़ियां होंगीं,
बरसूंगा मैं, गरजूँगा मैं
आसमान की बुलंदियों पर
धरती की पगडंडियों पर।
कोटि-कोटि धन्यवाद
जो मुझे पुरस्कृत करेंगे,
मैं अंधेरा, अहोभाग्य मेरे।
जो मेरे स्वागत में, आज
अनगिनत दीये जलेंगे।
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